क्या राजस्थान के गांधी की सरकार नहीं चाहती कि जनता के टेक्स का करोडों रूपये खर्च होने से बचे ??


 


पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने कार्यकाल में *पूर्व मुख्यमंत्री वेतन विधेयक* के नाम से एक ऐसा कानून बनाया जिसको विरोधियों द्वारा प्रिवीपर्स कानून की संज्ञा दी गई । इस कानून में यह प्रावधान किया गया है कि राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री को सरकारी बंगला , सरकारी सुरक्षा , वेतन , भत्ते के साथ मुफ्त स्टाफ मिलेगा । इससे हर साल राजस्थान की जनता के टैक्स का करोड़ों रुपया खर्च होगा । इस कानून के विरोध में उस समय बीजेपी के कद्दावर नेता व उस समय के विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने काफी विरोध किया और उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को यह सुविधाएं देना , यह कानून लाना गैर संवैधानिक है और एक तरह से राजा महाराजाओं के बंद किये गए प्रीवियस पर्स को दोबारा शुरू करना जैसा है ।
उन्होंने विधानसभा में और विधानसभा के बाहर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इस कानून का पुरजोर विरोध किया । इस कानून को राजस्थान हाईकोर्ट में जयपुर के दो वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा चुनौती दी गई और राजस्थान हाईकोर्ट ने पिछले दिनों यह निर्णय दिया कि यह विधेयक गलत है । पूर्व मुख्यमंत्री को यह सब सुविधाएं नहीं दी जा सकती क्योंकि वह पद से हटने के बाद एक सामान्य नागरिक है । अशोक गहलोत सरकार द्वारा यह बंगले खाली करवाने की जगह अब अशोक गहलोत सरकार हाई कोर्ट के इस निर्णय को रिवीजन में अपील करने जा रही है । प्रशंसकों के द्वारा राजस्थान का गांधी कहलाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार की क्या मजबूरी है कि वह पूर्व मुख्यमंत्रियों से बंगला खाली करवाने की जगह राजस्थान हाई कोर्ट के निर्णय को अपील द्वारा कोर्ट में दोबारा जा रहे हैं ।जनता के टैक्स के पैसे के करोड़ों रुपए को पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले वेतन और सुविधाओं के नाम पर बर्बाद करना खर्च करना कितना ठीक है । राजनेताओं की कथनी और करनी में कितना फर्क होता है इसका उदाहरण यह है कि वैसे तो ये खजाना खाली होने का रोना रोते रहते हैं लेकिन अपनी सुविधाओं के लिए करोड़ों रुपए सालाना खर्च करने में भी उनको कोई परहेज नहीं होता ।